आदेश गुप्ता को मिला दिल्ली भाजपा अध्यक्ष का ताज । अग्रवाल वैश्य समाज में खुशी की लहर , पार्टी के शीर्ष नेताओं का किया दिल से आभार व्यक्त ।

श्री अग्रसेन धाम कुंडली के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख राजेंद्र अग्रवाल ने दिल्ली भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता को बनाए जाने पर श्री गुप्ता को बधाई दी व इस आदेश के लिए श्री अग्रवाल ने अपनी पूरी टीम के साथ भाजपा के शीर्ष सभी नेताओं का आभार व्यक्त किया।




  • आदेश गुप्ता पहली बार 2017 में पार्षद चुने गए

  • एक साल बाद आदेश नॉर्थ एमसीडी के मेयर बने


मनोज तिवारी को दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है. दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद राजधानी की सियासत में ये सबसे बड़ा बदलाव है. फरवरी के चुनावों में बीजेपी को लगातार दूसरी बार आम आदमी पार्टी के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी थी. हार के बाद ही पार्टी में समीक्षा बैठकों का दौर चला था, जिसमें बतौर प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी के कामकाज पर कई नेताओं ने उंगलियां उठाईं थीं. सबसे बड़ा आरोप तालमेल का अभाव था, क्योंकि नेताओं ने ये आरोप लगाए थे कि तिवारी बतौर अध्यक्ष न तो पार्टी के प्रत्याशियों को जीत दिला पाए और न ही वरिष्ठ नेताओं के साथ मिलकर काम कर पाए.


मनोज तिवारी का दिल्ली अध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल साढ़े तीन साल से अधिक का रहा. इस दौरान तिवारी ने पार्टी को एमसीडी चुनावों में जीत दिलवाई. साथ ही साथ, लोकसभा चुनावों में अपनी सीट समेत बाकी सांसदों की जीत का सेहरा भी अपने नाम बांधा. लेकिन जब बात पार्टी के 21 साल के वनवास को खत्म करने की आई, तो दिल्ली की सत्ता की सीढ़ी पर तिवारी कहीं पीछे छूट गए.


ऐसे में दिल्ली बीजेपी का नेतृत्व आदेश गुप्ता जैसे एक बिलकुल नए नेता के हाथों में देना पहेली जैसा लगता है. क्योंकि आदेश पहली बार 2017 में पार्षद चुने गए और एक साल बाद नॉर्थ एमसीडी के मेयर बने. उनकी साफ-सुथरी छवि और मृदुभाषी होना उनके हक में काम कर गया. खास तौर पर तब जब दिल्ली नगर निगम के चुनाव अब दो साल से भी कम समय में होने हैं, ऐसे में बिलकुल नए चेहरे पर भरोसा जताना बीजेपी के लिए चुनौती भरा हो सकता है. लेकिन साथ ही साथ बड़ी चुनौती पार्टी के अंदर बैठे कई दिग्गज नेताओं के साथ तालमेल बिठाने की भी होगी.


मनोज तिवारी को अध्यक्ष बनाने के पीछे एक करिश्माई चेहरा होने के साथ ही दिल्ली के बड़े पूर्वांचली वोट बैंक को साधना भी था. लेकिन, आदेश गुप्ता एक अनजान चेहरे हैं, ऐसे में पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक को वो साध सकते हैं, लेकिन सात सांसदों और कई दिग्गजों को साधने में उन्हें खासी मशक्कत तो करनी पड़ेगी. लेकिन साथ ही सियासत में उनका नया होना उनके लिए सियासी तौर पर फायदेमंद भी हो सकता है, क्योंकि पार्टी आलाकमान के साथ वो वरिष्ठ नेताओं का समर्थन हासिल करने में कामयाबी भी हासिल कर सकते हैं.